۴۲
ویرایش
بدون خلاصۀ ویرایش |
Elyas-salehi (بحث | مشارکتها) بدون خلاصۀ ویرایش |
||
خط ۱: | خط ۱: | ||
{{ | {{سرصفحه | ||
| | | مطلع=مپرس حال دل داغدار و چشم ترم را | ||
| | | نام شعر=روضه رباب | ||
| | | شاعر =محمدجواد شاهمرادی | ||
| | | مصحح = | ||
| | | بخشی از دیوان = | ||
| قالب =غزل | | بخشی از مجموعه اشعار = | ||
| وزن = مفاعلن فعلاتن مفاعلن فعلاتن | |قالب =غزل | ||
| موضوع =حضرت سکینه(س) | |وزن = مفاعلن فعلاتن مفاعلن فعلاتن | ||
| | |موضوع =حضرت سکینه(س) | ||
| | | قبلی = | ||
| | | بعدی = | ||
| | | سال خورشیدی = | ||
| | | سال میلادی = | ||
| سال قمری = | |||
| یادداشت = | |||
}} | }} | ||
{{شعر}} | |||
{{ب|مپرس حال دل داغدار و چشم ترم را|شکسته صاعقۀ تازیانه، بال و پرم را}} | {{ب|مپرس حال دل داغدار و چشم ترم را|شکسته صاعقۀ تازیانه، بال و پرم را}} | ||
{{ب|اگر فرات به دجله بریزد و بخروشد|نمینشاند، یک ذره آتش جگرم را}} | {{ب|اگر فرات به دجله بریزد و بخروشد|نمینشاند، یک ذره آتش جگرم را}} | ||
خط ۲۵: | خط ۲۴: | ||
{{ب|چگونه سرو بمانم؟ که خط خاطره و خون|شکسته است دلم را، شکسته بال و پرم را}} | {{ب|چگونه سرو بمانم؟ که خط خاطره و خون|شکسته است دلم را، شکسته بال و پرم را}} | ||
{{پایان شعر}} | {{پایان شعر}} | ||